ग्रामीण भारत के विकास के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर कई विकास तथा रोज़गारपरक योजनाएं चलाई गयीं; जिनका मूल उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना था। ‘‘महात्मा गॉंधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम’’ नामक कार्यक्रम भी इसी क्रम में एक प्रयास है। इस कार्यक्रम द्वारा पहली बार रोज़गार गारण्टी को कानूनी रूप दिया गया।1 इसकी अधिसूचना 7 सितम्बर, 2005 को जारी की गयी। इस कानून का लक्ष्य हर वित्तीय वर्ष में ग्रामीण इलाके के प्रत्येक परिवार के ऐसे वयस्क व्यक्ति को कम से कम सौ दिन का रोज़गार सृजन वाला ग़ैर-हुनर काम मुहैया कराना है जो सूखा, वनों की कटाई तथा भू-क्षरण के कारण लगातार पैदा होने वाली ग़रीबी की समस्या के निवारण में मददगार साबित हो ताकि लगातार रोजग़ार सृजन की प्रक्रिया जारी रहे।2
2 फरवरी, 2006 को लागू इस कानून के प्रथम चरण में यह सुविधा 200 ज़िलों में उपलब्ध करायी गयी थी। सन् 2007-08 में इस कानून का विस्तार 330 अतिरिक्त ज़िलों में किया गया जबकि बाकी ज़िलों को इसमें शामिल करने की अधिसूचना 1 अप्रैल, 2008 को जारी की गयी।3 2 अक्टूबर, 2009 को इसका नाम परिवर्तित करके नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम) के स्थान पर मनरेगा (महात्मा गॉंधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम) कर दिया गया।4
पिछले पॉंच सालों से महात्मा गॉंधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम हमारे विस्तृत ग्रामीण इलाकों में ग़रीबी उपषमन का प्रमुख कार्यक्रम रहा है। जब से यह अधिनियम लागू हुआ है देश के निर्धनतम ज़िलों में लाखों लोगों के जीवन पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। निर्धारित न्यूनतम वेतन पर 100 दिनों के रोज़गार की गारण्टी देने वाला (11 सितम्बर, 2012 से सूखा प्रभावित राज्यों में 150 दिन का रोज़गार5) यह कानून पहला ऐसा कानून है जो दरिद्र ग्रामीण परिवारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु सरकार को विवश करता है।6
इस शोध-लेख में अध्ययनकर्ता द्वारा उ0 प्र0 तथा बस्ती जनपद में मनरेगा के तहत रोज़गार की स्थिति तथा पर्यावरण सुरक्षा का अध्ययन किया गया है। आंकड़े मुख्यतः पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, जिला पंचायत, उ0 प्र0 के आर्थिक सर्वेक्षण, पत्रिकाओं तथा मनरेगा की वेबसाइट www.nrega.nic.in द्वारा एकत्रित किये गये हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार उपलब्ध कराने की केन्द्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी ‘मनरेगा’ योजना के तहत वर्ष 2012-13 के दौरान (6 मार्च, 2013 तक) 4.53 करोड़ परिवारों को रोज़गार उपलब्ध कराये गये। कुल मिलाकर 166.57 करोड़ श्रम दिवस रोज़गार का सृजन सन्दर्भित वर्ष में इस योजना के तहत किया गया जिनमें से 88.03 करोड़ (52.85 प्रतिशत) महिला, 36.64 करोड़ (22 प्रतिशत) अनुसूचित जाति, 27.3 करोड़ (16.39 प्रतिशत) अनु. जनजाति तथा 102.63 करोड़ (61.61 प्रतिशत) अन्य लोगों के लिए थे।7 वर्ष 2012-13 के बजट में 33 हजार करोड़ रुपये का आवंटन इस योजना के लिए किया गया है।8
उ0 प्र0 में ‘मनरेगा’ योजना के तहत वर्ष 2012-13 के दौरान (6 मार्च, 2013 तक) 48.17493 लाख परिवारों को रोज़गार उपलब्ध कराया गया। कुल मिलाकर 1096 लाख श्रम दिवस रोज़गार का सृजन सन्दर्भित वर्ष में किया गया; जिनमें से 209.37 लाख (19.1 प्रतिशत) महिला, 368.82 लाख (33.65 प्रतिशत) अनुसूचित जाति, 11.59 लाख (1.06 प्रतिशत) अनुसूचित जनजाति तथा 715.6 लाख (65.29 प्रतिशत) अन्य लोगों के लिए थे। राज्य में वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान कुल जाब-कार्ड धारक परिवारों की संख्या (6 मार्च, 2013 तक जारी) 14830914 है, जिसमें 4676677 अनुसूचित जाति, 159061 अनुसूचित जनजाति तथा 9995176 अन्य जातियां हैं। राज्य में 4984158 ऐसे परिवार हैं जो रोज़गार की मांग कर चुके हैं। राज्य में मनरेगा के अन्तर्गत कार्य कर रहे परिवारों की संख्या 1351789 है, 100 दिन का रोज़गार पूर्ण कर चुके परिवारों की कुल संख्या 36182 तथा राज्य में विकलांग लाभार्थी व्यक्तियों की संख्या 11530 है।9
बस्ती जनपद में ‘मनरेगा’ योजना के तहत वर्ष 2012-13 के दौरान (6 मार्च, 2013 तक) 0.97844 लाख परिवारों को रोज़गार उपलब्ध कराया गया। कुल मिलाकर 24.76 लाख श्रम दिवस रोज़गार का सृजन सन्दर्भित वर्ष में किया गया; जिनमें से 6.17 लाख (24.9 प्रतिशत) महिला, 7.79 लाख (31.46 प्रतिशत) अनुसूचित जाति, 0.02 लाख (0.07 प्रतिशत) अनुसूचित जनजाति तथा 16.96 लाख (68.47 प्रतिशत) अन्य लोगों के लिए थे। जनपद में वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान कुल जाब-कार्ड धारक परिवारों की संख्या (6 मार्च, 2013 तक जारी) 266591 है, जिसमें 77156 अनुसूचित जाति, 157 अनुसूचित जनजाति तथा 189278 अन्य जातियां हैं। जनपद में 101918 ऐसे परिवार हैं जो रोज़गार की मांग कर चुके हैं। जनपद में मनरेगा के अन्तर्गत कार्य कर रहे परिवारों की संख्या 30574 है, 100 दिन का रोज़गार पूर्ण कर चुके परिवारों की कुल संख्या 814 तथा राज्य में विकलांग लाभार्थी व्यक्तियों की संख्या 187 है।10
मनरेगा का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत रोज़गार गारंटी सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम में इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु आवश्यक परियोजनाएं चलायी गयी हैं। ये परियोजनाएं ग्रामीण विकास, रोज़गार सृजन के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। मनरेगा को पर्यावरण से जोड़ने पर बल दिया जा रहा है।11 अधिनियम की अनुसूची के अनुसार मनरेगा के अन्तर्गत किये जाने वाले कार्य निम्नलिखित हैं-12
१ जल संरक्षण तथा जल संचय।
२ सूखे से बचाव के लिए वृक्षारोपण और वन संरक्षण।
३ सिंचाई के सूक्ष्म एवं लघु परियोजनाओं सहित नहरों का निर्माण।
४ अनु.जाति/अनु.जनजाति परिवारों या भूमि सुधारों के लाभान्वितों को जमीन तक सिंचाई की सुविधा पहुंचाना।
५ परम्परागत जलस्रोतों के नवीकरण हेतु जलाशयों से गाद की निकासी।
६ भूमि विकास।
७ बाढ़ नियन्त्रण एवं सुरक्षा परियोजनाएं, जिनमें जलभराव से ग्रस्त इलाकों से जल निकासी।
८ सहज आवाजाही हेतु गांवों में सड़कों का व्यापक जाल बिछाना, सड़क निर्माण परियोजनाओं में आवश्यकतानुसार पुलिया का निर्माण कराना एवं गांवों के भीतर सड़कों के साथ-साथ नालियां भी बनवाना।
९ राज्य सरकार के साथ परामर्श पर केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई भी अन्य कार्य।
जल संसाधन पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी तन्त्र को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है। जलवायु, मृदा, कृषि, वनस्पति तथा जीव-जन्तु सभी इससे प्रभावित होते हैं। अतः जल संसाधन का संरक्षण अपरिहार्य है। मनरेगा के अन्तर्गत जल-संरक्षण परियोजना को शामिल किया जाता है। इसके साथ वर्षा-काल में बिना प्रयोग व्यर्थ में बह जाने वाले आवश्यक जल के संचय पर भी जोर दिया जाता है। इसके लिए बांधों, तालाबों, नहरों आदि का निर्माण कराया जा रहा है; जिससे जल संचय होगा तथा जल की कमी द्वारा पर्यावरण को होने वाली क्षति को रोकने में भी मदद मिलेगी और पर्यावरण की सुरक्षा होगी।13
मनरेगा के अन्तर्गत जल संरक्षण के साथ-साथ परम्परागत जल स्रोतों के पुनर्नवीकरण हेतु जलाशयों से गाद की निकासी पर भी जोर दिया जाता है। इस कार्य में न केवल ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिल रहा है बल्कि जल संरक्षण के द्वारा ग्रामीण लोगों को साफ और स्वच्छ पेयजल भी उपलब्ध हो रहा है।14
मनरेगा के अन्तर्गत बाढ़ नियन्त्रण और जल भराव से ग्रस्त इलाकों से पानी निकासी की व्यवस्था पर भी जोर दिया जाता है। जल भराव के कारण भूमि में लवणों का संकेद्रण बढ़ जाता है, भूमि क्षारीय हो जाती है और भूमि की उत्पादकता कम हो जाती है। जल भराव का मुख्य कारण बड़ी सिंचाई परियोजनाओं से किसानों द्वारा अति सिंचाई करना, नालियों का अभाव आदि है। मनरेगा द्वारा सूक्ष्म तथा लघु सिंचाई परियोजनाओं पर जोर तथा गांवों में सड़कों के किनारे नाली का निर्माण कराया जाता है। इन कार्यों से पर्यावरण सुरक्षा के साथ कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी।15
मनरेगा द्वारा भूमि विकास पर बल, भूमि की उर्वरता कायम रखते हुए कृषि कार्य किया जाता है। इस हेतु रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक उर्वरकों एवं औषधियों का प्रयोग किया जाता है। इन सभी कार्यों से भूमि सुधार, पर्यावरण सन्तुलन, प्रदूषण से बचाव तथा स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण हो रहा है।16
इस योजना के अन्तर्गत सूखे से बचाव के लिए वृक्षारोपण तथा वनसंरक्षण परियोजना को शामिल किया गया है। वन वर्षा, आद्रता, तापमान में कमी, भूमि कटाव, भूक्षरण, भूमि उर्वरता तथा भूमिगत जलस्तर के लिए उत्तरदायी होते हैं। वन हवाओं की गति में अवरोधक एवं कार्बन-डाई-ऑक्साइड अवशोषित कर पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। एक वृक्ष अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में 12 टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड अवशोषित कर 0.04 टन ऑक्सीजन पर्यावरण को देता है। वनों के कटाव से पर्यावरण सम्बन्धित अनेक समस्याएं जैसे- जैव विविधता को खतरा, कई प्रजातियों की विलुप्तता तथा जलवायु परिवर्तन आदि उत्पन्न हो गयी हैं। वनों के संरक्षण एवं वृक्षारोपण से सूखा, मरुस्थलीकरण, बाढ़ की समस्या तथा पारिस्थितिकी तंत्र में असन्तुलन आदि समस्याओं से निजात मिलेगा और पर्यावरण सन्तुलित होगा।17
अन्त में, हम इस निष्कर्ष पर पहुचते हैं कि महात्मा गॉंधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) रोज़गार के अधिकार को साकार करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इस कानून के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक एवं सामाजिक बुनियादी ढांचा विकसित किया गया है जिससे लोगों को रोज़गार के नियमित अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से सूखा, वनों के विनाश तथा भूमि कटाव जैसी उन तमाम समस्याओं को भी सम्मिलित किया गया है जिसके कारण व्यापक पैमाने पर ग़रीबी फैल रही है। इस अधिनियम के उचित क्रियान्वयन से रोज़गार द्वारा ग़रीबी के भौगोलिक नक्शे में परिवर्तन तथा पर्यावरण की सुरक्षा को मजबूत किया जा सकता है।
सन्दर्भः-
1. कुरुक्षेत्र, फरवरी-2013, पृष्ठ-13.
2. कुरुक्षेत्र, दिसम्बर-2009, पृष्ठ-2 एवं योजना, अगस्त-2008, पृष्ठ 17.
3. भारत-2010, सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, पृष्ठ-894.
4. प्रतियोगिता दर्पण, अगस्त-2010, पृष्ठ-94.
5. अरिहन्त, समसामयिकी महासागर, फरवरी-2013, पृष्ठ-110.
6. कुरुक्षेत्र, अक्टूबर-2009, पृष्ठ-33.
8. प्रतियोगिता दर्पण/भारतीय अर्थव्यवस्था-2012, आगरा, पृष्ठ-176.
10- www.nrega.nic.in
11. www.jagran.com/bihar/shiekhpura-9468228.html
12. कुरुक्षेत्र, दिसम्बर-2009, पृष्ठ-27.
13. वही, पृष्ठ-27.
14. वही.
15. वही, पृष्ठ-28.
16. वही.
17. वही.
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